अहा! जिन्दगी

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अहा! जिन्दगी “सुन जीनत, हम फटाफट खाना निपटा लेते हैं, अभी-अभी खबर आई है कि मुख्य अतिथि एक घंटा लेट चल रहे हैं.” अर्चना ने बहाने से मुझे ऑडिटोरियम के कोने में ले जा कर कहा तो मेरा ध्यान घड़ी की और गया. अल्लाह! ग्यारह बज रहे हैं. दिसम्बर की ठंड में सुबह के आठ बजे से कॉलेज आ कर काम में लगे कब ग्यारह बज गए, मालूम ही नहीं चला. किसी छोटे से कस्बे में सरकारी कालेज का छात्रसंघ उद्घाटन समारोह एक बहुत बड़ी घटना होता है, जिसमे वहाँ का हर स्थानीय तुर्रम खां इन्वॉल्व होता है, और अगर