भुजाएँ

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भुजाएँ हृषीकेश सुलभ अष्टभुजा लाल को अपने बीते हुए दिनों के बारे में सोचना अच्छा नहीं लगता. बीते हुए दिनों की बात याद आते ही उन्हें मितली आने लगती है. उन्हें लगता है, जैसे अपनी पत्नी के वार्डरोब में बंद हो गए हों. इस वार्डरोब की याद उनके लिए किसी बजबजाते दुर्गन्धमय नाले में गिर जाने की तरह यातनाप्रद होती है. इस यातना से मुक्ति के लिए वह लगातार हाथ-पाँव मार रहे हैं. आकुल-आहत छटपटा रहे हैं. जबसे उन्होंने अपनी पत्नी का वार्डरोब देखा है, जीवन के बीते हुए दिनों के अजीब-अजीब चित्र उनके मन में बनते हैं. किसी डरावने स्वप्न की