अँधेरे का गणित - 2

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अँधेरे का गणित (कहानी पंकज सुबीर) (2) ख़ान कब उसके अँधेरों से जुड़ गया था उसे भी नहीं पता। टॉकीज़ में ख़ान से मिलकर आने के बाद अक्सर वो आइने के उस तरफ अनावरित भी नहीं होता था, जैसा आता वैसा ही चादर की सलवटों में समा जाता। सुबह उठकर हैरानी होती आज देह आवरित कैसे है? दरअसल उसके अँधेरों का गणित केवल तीन लोग ही जानते थे, टॉकीज़ वाला ख़ान, उसका दोस्त और आईने के उस तरफ का ‘मैं’ वो भी जब वो अनावरित हो। हाँ किशोरवस्था से भीगा वो चेहरा जो अँधेरी से गोरेगाँव तक उसके साथ जाता