भीड़ में - 6

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भीड़ में (6) “बाऊ जी बुरा न मानो तो एक गल कवां---“मंजीत चेहरे पर मुस्कान ला बोला, उन्हें अच्छा लगा था कि उस दिन जैसे रुखाई उसमें न थी---’शायद’ यह मेरी विवशता समझ रहा है. उन्होंने सोचा था. “किराए दे पैसयां द हिसाब अलग ही रहे ते चंगा होयेगा.” उन्होंने मंजीत के चेहरे पर नजरें टिका दी थीं. “एक प्रपोजल है.” “हां—हां—कहो.” “जे मैं तोहनू साढ़े तीन हजार दवां ते दस हजार हो जाएंगे. इस नू तुसी पगड़ी समझो या---जे परमिशन दो ते मैं इस पोर्शन को अपने नाम –एलॉट करवा लवां.” “ऎं---?” वे चौंके थे, लगा था जैसे आसमान