नो !

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‘नो’! कैलाश बनवासी ‘‘प्रभा, लोन वाली फाइल का अपडेट करके जाना। ...ये आगे भेजना है। ’’ अविनाश सर ने जब अपने सूखे लहजे में कहा तो उससे कुछ कहते नहीं बना। बोस की कैसे हुक्मउदुली करे वह, वह भी इन चार महीने की छोटी-सी अवधि में? लगभग प्रार्थना करते हुए उसने कहा, ‘‘सर, आलरेडी छह बज चुके हैं...। ’’ सामने टंगी दीवार घड़ी में छह बीस हो चुके थे। ‘‘नो नो ना, े प्रभा...। इट इज़ मस्ट.!..अपडेशन नहीं होगा तो इंक्वायरी हो जाएगी...। ’’ सुनहरे फ्रेम के चश्मे के भीतर से उनकी आँखें चमक रही हैं। ‘‘सर, पर ये तो