अंतिम संस्कार यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है पर पिछले कुछ थोड़ेही समय में माहौल इतना बदल चुका है कि अभी कुछ बरस पहले ही की बात ऐसीलगती है कि मानो वह बहुत पुरानी बात हो। जैसे सड़कों पर तांगों कादौड़ना साइकलों की बहुतायत स्कूटरों की बहुत कम संख्या कारें या तोसरकारी या शहर के सबसे बड़े रईस की कार। यह उस समय की बात है जबदूरदर्शन का प्रवेश नहीं हुआ था । लोग रेडियो पर गाने सुनते थे। सिनेमाहॉल ठसाठस भरे रहते थे । बाबू और अफसर साईकिल चलाने मैं शर्माते नहींथे । उसी युग के थे हमारे पांडे जी जो खुद बदलते समय में आना ही नहींचाह रहे थे पर समय था कि उन तक पहुंच गया था । तब उन्होंने तय किया कि वे रुक गए और अंतिम समय