कहानी मेरी कामयाबी की...

(17)
  • 7.5k
  • 1
  • 1.9k

कामयाबी के सपने बुनते हुए मैं नए सफर की ओर बढ़ रही थी। बाहर के दृश्य को रोचकता से देखते हुए मैं बस में खिड़की किनारे से सिर टिकाए बैठी थी। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए मैं अपना शहर छोड़ दूसरे शहर जा रही थी। एक अनजान शहर, जहां इससे पहले मैं कभी नहीं गई थी , नए लोग और भी तमाम नई चीजें। बस चल ही रही थी कि तभी अचानक से अनचाहे हवा के झोंके ने मेरी रूह को छू गई और मुझे मेरे बचपन में ले कर खड़ा कर दिया ।जहां मैं बेफिक्र रहती थी। ना तो कोई