लत का गुलाम अगहन का महीना था, सर्दी पड़नी शुरू हो गई थी। फसल पानी मांग रही थी, तभी आसमान में घटा होने लगी। शायद वर्षा हो, ऐसा लगने लगा था। इसी इंतजार में आसमान की तरफ देखते-देखते कई दिन बीत गए। फिर एक दिन सुबह को हेता ने अपने दोनों बेटों से कहा - "अब तौ भइया मेह बरसतौई नांय दीखै है, बादरन की मांई देखत-देखत कई दिन ह्वै गए। अब गेहूं बिगरन लगंगे । या ते तो आज तुम दौनों भइया जायकै नाली छीलिआऔ , कल ते गेंहून में पानी लगायनौ शुरू कर दइयों।"अगले दिन सुबह हेता