बिखरते सपने (6) ट्रिन.........ट्रिन......ट्रिन.... डोरबेल की आवाज सुनकर, ‘‘पता नहीं कौन है...? बार-बार बेल बजा रहा है...।’’ सपना जाकर दरवाजा खोलती है। सामने मिस्टर गुप्ता को देखकर,‘‘शिकायती लहजे में कहती है, ‘‘आपने भी हद कर दी, बार-बार घण्टी बजाये जा रहे हैं...आवाज नहीं दे सकते थे।’’ मिस्टर गुप्ता सपना की बात को अनसुना करते हुए खुशी से उछल कर कहते हैं, ‘‘सपना, आज मैं बहुत..बहुत...बहुत खुश हूं...।’’ ‘‘अच्छा, क्या आपका परमोशन हो गया, या कहीं कोई गड़ा हुआ खजाना मिल गया...?’’ ‘‘सपना, अगर खजाना मिल जाता या मेरा परमोशन हो जाता, तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती।’’ ‘‘तो फिर क्या