बहीखाता - 36

  • 6.1k
  • 2.1k

बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 36 कैसे जाओगे ? और वोलकेनो… पंजाब के दौरे पर थी। एक दिन मैं पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला गई। कोई समारोह था। समारोह के बाद हम बहुत सारे लेखक मित्र जसविंदर सिंह के घर एकत्र हुए। वहीं मैंने अचानक गुरविंदर रंधावा को देखा। तेजबीर के दोस्त को। वह मुझे एक कोने में ले जाकर बताने लगा, “तुम्हें पता है कि तेजबीर की इस वक्त क्या हालत है ?” मुझे इस बारे में क्या पता हो सकता था। मैं उसके बारे में बहुत वर्षों से कुछ नहीं जानती थी। मैंने मालूम करने की