एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (2) आठवाँ दिन अंदर पूर्णिमा में बदलता जाता है चाँद! वे टहल रहे हैं। पेड़ों की छाँह भरे घुमावदार, साफ-सुथरे रास्तों पर, जहाँ पेड़ों से झरे पीले पत्ते बिछे हैं। अतीत सूख-झरकर नीचे बिछ गया है? मान्या पूछना चाहती है। अगले सेशन का समय हो रहा है। अजित कह रहा है- ‘हम अलग रास्तों पर निकल गए थे, पर नियति ने हमें फिर से मिला दिया। एक तुम - लहूलुहान दिल की विधवा एक मैं - बिना विवाह, लंबे रिश्ते से गुजर, प्रेमिका से अलग हो चुका कुँवारा। तो वीराना झेल रहे, आधे-