दोहराव कैलाश बनवासी हड्डियों का ढाँचा यानी बाप,इन दिनों फिर बेतरह बौखलाया हुआ रहता है. संकी तो वह पैदाइशी है.और आजकल बात-बेबात उसका गुस्सा सातवें आसमान की हद पार कर जाता है.बेवजह ही,साढ़े तीन फुटिया अपने घर की चौखट से सिर निकालकर,सामने की आधी कच्ची आधी पक्की ऊबड़-खाबड़ सड़क पर खेलती, धूल से अटे फ्राक और बिखरे भूरे बालों वाली आठ साल की मैली सी लड़की को तेज़ आवाज़ लगाता है. भारी सी धारदार आवाज़—‘अरेsss सुनीsssतेssss !! लड़की सहमी सी दौड़कर आती है. “कहाँ मरा रही थी अब तक? तुझे घर में कोई काम नहीं है क्या?...चल...अब खड़े-खड़े मेरा मुँह