मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (3) अंकल जी की आवाज़ जैसे किसी गहरे कुंएँ में से बाहर आई, "अच्छा! " उन्होंने कह तो दिया, परन्तु लगा जैसे कुएँ में झांकते हुए गहराई से आवाज़ गूँज कर बार बार कानों से टकरा रही है, और पानी में खिचड़ी बाल, चेहरे की गहरी लकीरें भी नज़र आ रही हैं। रंग अपने चेहरे का दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि कुएँ के अंधेरे में घुलमिल गया था। रानी को आंटी जी पर रहम आने लगा, "अंकल जी फिर आंटी जी का क्या होगा? " "अरे होना क्या है, पहली बीवी के तमाम