उधड़ा हुआ स्वेटर - 4 - अंतिम भाग

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उधड़ा हुआ स्वेटर सुधा अरोड़ा (4) ‘‘सॉरी!’’ उसने माफी माँगी, पर शब्द बुदबुदाहट में सिमट कर रह गए. बाएँ हाथ की उँगलियों ने उठकर धीरे से दूसरी कुर्सी की ओर इशारा किया- ‘‘बैठ जाइए प्लीज़!’’ बूढ़े ने सुना नहीं और कुर्सी पर अनमनी-सी बैठी शिवा की आँखों में झाँका. शिवा ने एकाएक महसूस किया कि उसकी आँखों की कोरों पर बूँदें ढलकने को ही थीं. ये आँसू भी कभी-कभी कैसा धोखा देते हैं- बिन बुलाए मेहमान की तरह मन की चुगली करते हुए आँखों की कोरों पर आ धमकते हैं और बेशर्मी से गालों पर ढुलक कर मन के बोझिल