फिर वही रफ़्तार बेढंगी--- आटा-चक्की के मोटर बहुत शोर करता है। लगता है उसकी बियरिंग खराब हो गई है। मोटर और चक्की के बीच तेज़ी से घूमते बेल्ट से उठता ‘खटपिट खटपिट’ का शोर सलीमा का कुछ नहीं बिगाड़ पाता। सलीमा को इस शोर की आदत पड़ चुकी है। आदत ऐसे ही नहीं पड़ती। इंसान के पास जब सुविधाओं की सम्भावनाएं ख़त्म हो जाती हैं, जब बेहतर दिनों की आमद से वह नाउम्मीद हो जाता है तब उसे दुःख झेलते-झेलते दुःख सहने की आदत पड़ ही जाती है। सलीमा ने अपने जीवन की राह में तमाम तकलीफ़ उठाए। और