मेरे हिस्से की धूप - 1

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मेरे हिस्से की धूप ज़किया ज़ुबैरी (1) गरमी और उस पर बला की उमस! कपड़े जैसे शरीर से चिपके जा रहे थे। शम्मों उन कपड़ों को संभाल कर शरीर से अलग करती, कहीं पसीने की तेज़ी से गल न जाएँ। आम्मा ने कह दिया था, "अब शादी तक इसी जोड़े से गुज़ारा करना है।" ज़िन्दगी भर जो लोगों के यहाँ से जमा किए चार जोड़े थे वह शम्मों के दहेज के लिए रख दिये गए – टीन के ज़ंग लगे संदूक में कपड़ा बिछा कर। कहीं लड़की की ही तरह कपड़ों को भी ज़ंग न लग जाए। अम्मा की उम्र