ईश्वर चुप है - 1

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ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (1) रंजना मंदिर की सीढ़ियां चढ़ती ठिठक रही है। ईश्वर से उसका रिश्ता बहुत पेचीदा होता जा रहा है। उसे इस रिश्ते को रेशे - रेशे कर समझने का मन होता है। हर बार यह ठानकर भी कि ईश्वर के दरबार में ये आखिरी हाजिरी है, वह अपने निश्चय पर अडिग नहीं रह पाती। अवशता की कोई लहर आती है और उसे ईश्वर के सामने ला पटकती है। तू है कि नहीं है? कहां है, कैसा है, खुश कैसे होता है और अच्छे काम करते रहने पर भी दुख - ही - दुख क्यों देता