लाजपत राय गर्ग की चुनिंदा लघुकथाएँ (6) जब तक तन में प्राण हैं.... शाम गहराने लगी थी और मौसम भी गड़बड़ाने लगा था। कबूतर अभी तक वापस नहीं आया था। कबूतरी को उसकी कुशलता की चिंता होने लगी। पल-पल गुज़रने के साथ कबूतरी की बेचैनी बढ़ रही थी, इन्तज़ार असह्य होती जा रही थी। पन्द्रह-बीस मिनटों के बाद दूर से आते कबूतर को देख उसके मन को राहत मिली। आलने में कबूतर के प्रवेश करते ही कबूतरी ने पूछा - ‘आज इतनी देर कहाँ लगा दी, मेरी तो जान ही निकलने को हो रही थी।’ ‘तू तो बेवजह घबरा जाती