रात का सूरजमुखी अध्याय 5 शाम 6:00 बजे। सुबानायकम् के बंगले के सामने ऑटो को रोक कर मीटर देख रुपए देकर कंधे पर पर्स को लटका कर शांता ने घर के अंदर प्रवेश किया। घास को पानी दे रहे सुबानायकम् उसे देख कर बोले "जाकर सोफे पर बैठो------मैं अभी आ रहा हूं।" शांता अंदर गई। सामने के कमरे में कल्पना दिखी। उसके हाथ में एक पुरानी पुस्तक थी। "नमस्ते।" पुस्तक से आँख उठाकर कल्पना, शांता को देख धीरे से मुस्कुराई। "आओ !" "कुछ बात करनी है फोन किया था।" "बैठो ! बड़ों को आने दो।" शांता बैठी। कुछ देर मौन के