परियों का पेड़ (15) राजू बन गया राजकुमार अब तो राजू की खुशियों का ठिकाना न रहा | वह काफी देर तक बार – बार, ऊपर से नीचे तक अपने आपको ही निहारता रहा | अपनी गर्दन को दायें – बाएँ घुमा – घुमा कर अपने मुकुट को संभालते हुए, अपने शरीर के सुंदर वस्त्रों को चारों ओर से देखने की कोशिश करता रहा | उसका दिल मानो बल्लियों उछल रहा था | खुशियाँ उसके आगे – आगे नाच रही थी | उसके सपने पूरे होने लगे थे | ऐसा तो उसने अब तक सिर्फ कहानियों वाले परीलोक में होता