रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात - 3

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रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (3) ‘‘तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूँ मैं..... यह गाना मेरा बहुत फेवरेट था लेकिन कुछ समझ नहीं आता था कि ये क्या बात है कि नाराज़ नहीं हूँ बस हैरान हूँ। अजीब सी बात है। बहुत समझने की कोशिश करती थी लेकिन कुछ पल्ले नहीं पड़ता था कि आख़िरकार इसका मतलब क्या है। जब बहुत ज़्यादा उत्सुकता बढ़ गई तो ज़िंदगी ने ख़ुद ही एक दिन समझाने की व्यवस्था कर दी कि ले अब अपने अनुभव से ही समझ ले।’’ शुचि की आवाज़ में हल्का-हल्का दर्द घुल