मासूम गंगा के सवाल (लघुकविता-संग्रह) शील कौशिक (3) सीख लें जीना *********** हाथ पर हाथ धरे यदि यूँ ही ठाले बैठे रहे हम हम नहीं बदलेंगे की तर्ज पर डटे रहे तो फिर सीख लेना चाहिए हमें जीना गंगा के गुस्से के साथ यूँ ही कोहराम मचाती रहेंगी नदियाँ और न जाने कितनी जीवन ज्योत बुझाती रहेंगी यूँ हीI जीवनदान ********* लेकर हाथ में गंगाजल मांगते थे जिन्दगानी कभी मैया से अपने सजना या सजनी की अब गंगा पी-पीकर कचरा छटपटा रही है खुद ही मांग रही है तुमसे जीवनदान सोचो जरा मरती(जलहीन) नदियाँ कैसे देंगी जीवनदान तुम्हेंI किसने छीन