एबॉन्डेण्ड - 5

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एबॉन्डेण्ड - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 ‘कोई मालगाड़ी होगी। पैसेंजर गाड़ी तो साढ़े तीन बजे है, जो हम दोनों को यहां से दूर, बहुत दूर तक ले जाएगी।’ ‘पैसेंजर है तो हर जगह रुकते-रुकते जाएगी।’ ‘नहीं अब पहले की तरह पैसेंजर ट्रेन्स भी नहीं चलतीं कि रुकते-रुकते रेंगती हुई बढ़ें। समझ लो कि पहले वाली एक्सप्रेस गाड़ी हैं जो पैसेंजर के नाम पर चल रही हैं। यहां से चलेगी तो तीन स्टेशन के बाद ही इसका पहला स्टॉपेज है।’ ‘सुनो, तुम सही कह रहे थे। देखो मालगाड़ी ही जा रही है।’ ‘हां।’ ‘लेकिन तुम इतना दूर क्यों खिसक गए हो।