हर्ज़ाना - 1

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हर्ज़ाना अंजली देशपांडे (1) घंटी बजी, नौकर ने दरवाज़ा खोला और वापस आकर कहा, “चार लोग हैं साब.” उनके चेहरे की हर झुर्री प्रफुल्लित हो उभर आई. वे इतनी तत्परता से उठे कि रीढ़ ने प्रतिवाद किया. नौकर समझ गया था. वकील साहब खुद दरवाज़े तक पहुंचते इससे पहले ही वह उन्हें अन्दर ले आया. नीम अँधेरे कमरे की वातानुकूलक से छनी हवा में पसीने की तीखी गंध ने उनके आगमन की सूचना दी. स्वाभाविक प्रतिक्रिया में वकील साहब ने सांस रोकी और सिकुड़े होंठ से हवा की लम्बी धार बाहर छोडी. “आइये,” उन्होंने कहा मगर लगा जैसे फुफकारे हों.