जबसे इस घर में आई है सावी

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जब से इस घर में आई है सावी,एक दिन सुख का साँस नहीं लिया।रतिया की नाली के किनारे का गाँव,बारिश में छत तक पानी भर जाता,रत्ता टिब्बा पर जाकर शरण लेनी पड़ती।बाकी पूरा साल प्यासा।घर में हाथ से खींचने वाला नलका तक नहीं।दो टोकनी बग़ल में एक चाटी सिर पर उठाकर सावी दो किलोमीटर चहलों के नलके पर जाती।चहलों के गबरू होते लड़के भाबी,भाबी करके नलका गेड़ते।चहलों की बूढ़ी अम्मा खाट पर बैठी गालियाँ बकती।कोसने कोसती।सावी की सात पुश्तों की औरतों के चरित्र पर लांछन लगाती।सावी की कोई प्रतिक्रिया न पाकर,फिर से रहरास साहिब का जोर जोर से पाठ करने