भदूकड़ा - 25

(19)
  • 5.3k
  • 1.6k

भैया ने उनकी बात नहीं सुनी, ये बुरा लगा सुमित्रा जी को, लेकिन इस बुरा लगने में कोई दुर्भावना नहीं थी उनके मन में. बस दुख था, कि यदि भैया सुन लेते तो शायद ऐसा अपमान नहीं करते. स्वाभिमानी पिता की स्वाभिमानी बेटी थीं सुमित्रा जी. भैया से असीमित स्नेह रखती थीं, आगे भी रखेंगीं, ईश्वर उनका बाल भी बांका न करे, उनकी तक़लीफ़ें सुमित्रा जी को दे दे.... जैसी तमाम बातें मन ही मन दोहराते हुए ही सुमित्रा जी न अब आगे कभी भी भैया घर न आने की क़सम खाई थी. इस घर से अपमानित हो के निकल