कुबेर डॉ. हंसा दीप 14 दादा कुछ कहें और उनकी बात डीपी का मन न छू पाए यह संभव ही नहीं था। वही हुआ। घावों पर मरहम लगे। इस समय तक दादा की इस पीड़ा से अनजान था डीपी। जब यह सुना तो लगा कि दादा ने भी कितना कुछ सहा है। उनके कंधे से सिर टिकाया तो रुका हुआ सैलाब बाहर आने लगा। आँसुओं के रेले बहने लगे। दादा की बाँहों में सिर टिका कर बहुत रोया डीपी। दहाड़े मारकर रोया। दादा ने भी उसके विलाप में सहारा दिया। एक दूसरे की व्यथा को जानते-पहचानते दो अजनबी एक-से दर्द