घर पहुँचकर श्वेता ने अपने पास रही चाबी से लॉक खोला और अन्दर आकर दरवाजा बंद कर लिया । उसने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी पर नजर डाली । अभी सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे । दबे पैरों से आहट किए बिना वह अपने कमरे में चली गई । कमरे में अँधेरा होने से उसने अपने मोबाइल की रोशनी से अपने बिस्तर को टटोला और उसके सिरहाने रखा गाउन लेकर कपड़े बदल डाले । आहट पाकर पास के बेड पर सोई हुई आकृति ने करवट ली और फिर वापस सो गई । श्वेता ने रसोई में आकर एक