जो घर फूंके अपना - 9 - चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस

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जो घर फूंके अपना 9 चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस बैडमिन्टन का नशा ठीक से चढ़ने से पहले ही उतर गया. जवानी दीवानी उदास हुई तो आसानी से मुस्करा न सकी. दो एक महीनों के बाद ही आया नया साल. मेस में पार्टी के साथ उसका स्वागत हुआ. पर वह पहले जैसी बात कहाँ? फिर दो तीन महीनों के बाद “बीहू“ का उत्सव आ गया. असम का फाल्गुनी उत्सव. धान की फसल पकने के उल्लास का उत्सव. केदार नाथ अग्रवाल की बेहद खूबसूरत कविता ‘ बसन्ती हवा’ के बोलों पर इठलाकर झूमने नाचने का उत्सव. बीहू नृत्य