दास्ताँ ए दर्द ! - 17 - अंतिम भाग

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दास्ताँ ए दर्द ! 17 प्रज्ञा को बहुत समय लगा सत्ती के ऊपर कुछ लिखने में ! वह जैसे ही उसकी किसी स्मृति को लिखना शुरू करती, उसकी आँखों से आँसुओं की धारा निकल जाती और दृष्टि धुंधला जाती| इतना भी कठोर हो सकता है विधाता अपने बच्चों के लिए ? फिर अगर सत्ती कठोर हो गई थी तो क्या बड़ी बात थी ? जब उसने सत्ती को देखा था, वह चिड़चिड़ी हो चुकी थी | सहित-धवल वस्त्रों में सुसज्जित सत्ती के चेहरे पर वैसे तो मायूसी पसरी रहती पर चेहरे का निष्कपट भाव लुभा लेता | पता नहीं लोग उसकी इस मूरत को क्यों