कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 21 वह रात बहुत लम्बी थी और कुछ हद तक स्याह भी... अनिता के लिए बात रुकने के साथ रात भी रुक गयी थी। हम चाहते थे कि इस रात की सहर जल्द ही हो। रेखा खुश थी और सपनों में खोयी थी... जागती आँखों के हसीन सपने थे वे... भोर का उजाला उसे साफ दिख रहा था और मैं... मैं सुनील की लिखी पँक्तियों में अपनी सुबह तलाश रही थी... मेरे लिए पौ फटना शुरू हो गयी थी। उगते सूर्य की लालिमा रात्रि के गहन तिमिर में भी मेरे चेहरे पर झलक रही थी।