कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 19 ये उन दिनों की बात है जब नौकरी के लिए भारी भरकम डिग्रियों का हुजूम नहीं चाहिए होता था और न ही गलाकाट प्रतिस्पर्धा का जमाना था। कोचिंग क्लासेज अस्तित्व में नहीं आयीं थीं और सामान्यतः पच्चीस वर्ष की उम्र के पहले ही डिग्री के साथ एक अच्छी नौकरी आपकी झोली में रहती थी। पैकेज का नहीं सैलरी का जमाना था। नौकरी लगते ही घर वाले छोकरी की तलाश शुरू कर देते थे। प्रेम की पींगे बढ़ाने का अवसर बहुत कम को ही नसीब होता था। रुपहले पर्दे पर हीरो हिरोइन का प्रेम ही