निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 36

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'अलविदा, मेरे अच्छे दोस्त!'…लेकिन गहरे ध्यान में जाने अथवा किसी को पुकारने का मुझे अवसर ही नहीं मिला। मैंने जैसे ही गिलास हाथ में उठाया, शरीर में जाना-पहचाना कम्पन हुआ, जो इस बात का संकेत था कि कोई आत्मा बिना बुलाये ही आ पहुंची है। मैंने शीघ्रता से संपर्क साधा और पूछा--'आप कौन हैं? अपना परिचय दें।'आत्मा ने अपना परिचय पहले हंसकर दिया, फिर बोली--'परिचय क्या पूछते हो ? मैं हूँ चालीस...!'उसकी उपस्थिति की जानकारी से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी-सी हुई। रोमांचित होकर मैंने कहा--'अरे, इतने दिनों बाद तुम्हें मेरी याद आई है?'--'हुश्श... ! याद तो उसकी आती है,