वह आ पहुँची फिर एक बार…]श्रीमतीजी का हाल यह था कि वह अब मुझसे ही परहेज करने (डरने) लगी थीं। यह मेरे लिए असहनीय स्थिति थी। वह प्रायः मुझसे पूछतीं--'क्यों, आप अकेले ही हैं न? कोई आपके साथ, आपके पास, आप में तो नहीं ?' उनके ये प्रश्न मुझे निरीह बना देते ! लेकिन यह सब मुझे सहना था--उनकी अति-चिंता भी, उनका तिरस्कार भी। और, मेरे दुर्भाग्य से और दैव-योग से उन्हें सहना था मुझ निर्दोष, अकिंचन का दिया हुआ अकूत भय...! सच तो यह था कि तब इतना धीरोदात्त मैं भी कहाँ था?...जीवन में इसी तरह का हस्तक्षेप और