इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... - 3

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इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (3) पुराने खंडहरों में बिखरे खाली बोतलों, सीरिंज के बीच लड़के दुनिया-जहान से बेखबर अपनी सुई से छलनी बाहें लिए पड़े रहते। जोगियों-अघोरियों का डेरा लगता उनका आस्ताना। उनकी पीली, चढ़ी हुई आँखों में तितलियों के उड़ते जत्थे होते, नीले-गुलाबी बादल होते। पीठ बन गए पेट में मरी हुई भूख और दुबली बाँहों की रस्सी-सी ऐठी नसों में जहर की नीली नदी! गलियों में चलते-फिरते लाश की तरह लगते जवान लड़के। गड्ढे में धँसी आँखों में बस सन्नाटा और खोयापन होता। वे पूरी दुनिया से कट कर जाने किस दुनिया में जा