जी-मेल एक्सप्रेस - 25

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जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 25. अब मेरी बारी थी आज किसी से नमस्ते करने का भी साहस नहीं जुटा पा रहा था। चुपचाप अपनी सीट पर जा बैठा। धमेजा ने मुझे देखकर भी अनदेखा किया। पता नहीं, मुझसे नजरें मिलाकर वह मुझे शर्मिंदा नहीं करना चाहता था, या फिर उसने मेरा बहिष्कार किया था। फिलहाल, मेरी स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं अपनी सफाई में कुछ कहता। मैंने अपना चेहरा फाइलों में छुपा लिया। ‘‘साब जी, आपका फोन बज रहा है...’’ चपरासी शायद बात करने का बहाना तलाश रहा था मगर मेरा फोन सच में बज रहा था। घबराहट पर