जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 21. मरीना की याद के साथ दिल्ली की वापसी ये दिन हवा के झोंके की तरह गुजर गए। हमारी वापसी की टिकट शनिवार शाम की थी, हमारे पास दिन का समय खाली था। ‘‘मरीना बीच पर चलें?’’ विनीता के स्वर की आतुरता के साथ मेरे भीतर भी मरीना से दोबारा मिलने की इच्छा तीव्र हो गई। लगभग तीस वर्षों बाद दोबारा यहां आया था, इससे पहले कॉलेज ट्रिप के साथ आया था। मरीना बिलकुल वैसी ही थी उन्मुक्त... उद्दाम... उच्छृंखल... सफेद झाग के बीच हलकी-सी मलिनता... पाश में भर लेने के आवेश के साथ अपनी अजान