जनाब सलीम लँगड़े और श्रीमती शीला देवी की जवानी (कहानी पंकज सुबीर) (3) उसके बाद की बरसात श्रीमती शीला देवी के लिए वैसी नहीं रही, जैसी कष्टदायक उस दिन के पहले थी। अब बरसात में ठंडक आ गई थी। ठंडक आ गई थी, या ठंडक पड़ती रहती थी। अब हिना का अत्तर खेत के उस टप्पर में गाहे-बगाहे महकने लगा था। बल्कि यह कहें तो ज़्यादा ठीक होगा कि हिना के अत्तर की भीनी-भीनी महक अब टप्पर में हमेशा ही बनी रहती थी। एक-दो दिन कम होती, फिर किसी दिन तेज़ हो जाती। जिस दिन तेज़ बरसात होती उस दिन