दरमियाना भाग - १४ जिस्म और जज्बात का संतुलन जाहिर है कि ‘इन जैसों’ से यह मेरा पहला परिचय नहीं था। सुनंदा मेरे लिए नयी जरूर थी, मगर मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि आखिर मैं ही क्यों -– क्यों मैं ही ‘इन जैसों’ के संपर्क में रह-रहकर आ जाता हूँ।... नहीं मालूम कि ऐसा क्या था, जो अपने बचपन से मैं एक बार तारा के संपर्क में आया, तो फिर यह सिलसिला ही बन गया। कह सकते हैं कि एक संपर्क से दूसरा संपर्क... और दूसरे परिचय से तीसरा -– मगर बात केवल इतने भर से खत्म