बहीखाता - 34

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 34 एंजाइना निरंजन सिंह नूर साहब की मौत मुझे झिंझोड़कर रख गई। इंग्लैंड में एक प्रकार से वह मेरी ताकत थे। भाई की मृत्यु के बाद बड़ा भाई बनकर उन्होंने मेरा साथ दिया था और मेरे भाई के अधूरे रह गए सपनों को पूरा करने में मेरी मदद का वायदा भी किया था। उनके कारण ही मैं इस मुल्क में थी। यदि वह मुझे वुल्वरहैंप्टन न लाते तो मैं कब की वापस लौट गई होती या फिर कही मर-खप गई होती। उनकी मृत्यु ने मुझे बहुत बड़ा भावुक अभाव दे दिया