बहीखाता - 31

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 31 मकसद भाई की मौत के दुख में से मैं धीरे-धीरे उबरने लगी। मित्रों ने इसमें मेरी बहुत मदद की। मेरा ही विद्यार्थी बिपन गिल अफसोस प्रकट करने आया तो एक लिफाफा दे गया। खोलकर देखा, उसमें दो सौ पौंड थे। अब तक मैंने कुछ पैसे इकट्ठे कर लिए थे ताकि इंडिया जा सकूँ। कालेज से छुट्टी ली और शीघ्र ही दिल्ली एअरपोर्ट पर जा उतरी। एयरपोर्ट पर जसविंदर मुझे लेने आई हुई थी। जसविंदर के साथ सोढ़ी भी था। सोढ़ी मेरा भतीजा जो उस समय सिर्फ़ सात वर्ष का था।