क्रान्तिकारी (1) समस्या ज्यों-की त्यों विद्यमान थी. सात महीने सोचते हुए बीत गये थे, लेकिन न तो शैलजा ही कोई उपाय सोच पायी और न ही शांतनु. ज्यों-ज्यों दिन निकट आते जा रहे थे शैलजा की चिन्ता बढ़ती जा रही थी. पेट का बढ़ता आकार और घर और दफ्तर के काम---- सुबह पांच बजे से लेकर रात नौ बजे तक की व्यस्तता शैलजा को निढाल कर देती. वह सोचती, यदि घर के कामों में ही किसी का सहयोग मिल जाता तो इतना स्ट्रेस उसे बर्दाश्त न करना पड़ता. लेकिन शांतनु का सुबह-शाम के लिए कोई नौकरानी रख लेने का प्रस्ताव