इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (1) पेड़ के घने झुरमुटों के बीच से अचानक आसमान का वह टुकड़ा किसी जादू की तश्तरी की तरह झप से निकला था- चमचमाता नीला, चाँद-तारों से भरा हुआ! चारों तरफ यकायक उजाला फैल गया था। कश्मीरा आंख चौड़ी कर देखता रहा था, घुप्प अंधेरे की अभ्यस्त आँखें चौधिया गई थीं। जाने कितने दिन हो गए थे रोशनी देखे! स्याही के अंतहीन ताल में ऊभ-चुभ रहे थे सबके सब। रोशनी बस जुगनू की तरह यहाँ-वहाँ तिमकती हुई। घुटने में चोट लगी है। लंगड़ा कर चलता है वह। उसके रह-रह कर कसक उठते