एहसास का दंश

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कहानी एहसास का दंश#लोहे का भारी गेट ठेलकर अंदर कदम रखते ही बंगले के माथे पर खुदे अक्षरों पर मेरी निगाहें टिक गयीं ।-''मायापुरी ..।" मैं बुदबुदाया-" वाह, भाई साहब ने तो मुम्बई की पूरी सिने नगरी ही बसा ली है अपने बंगले में ।"मेरे और भाई सहब की उम्र में करीब छह वर्षों का अन्तर रहा होगा। पिता जी तो भाई के ग्रएजुएशन के बाद ही स्वर्गवासी हो गए