भदूकड़ा - 19

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सुमित्रा की नौकरी ने ये तय कर दिया था, कि उसे अब स्थाई रूप से गांव नहीं जाना है. जायेगी, लेकिन मेहमानों की तरह. त्यौहारों पर, या गरमी की छुट्टियों में.’दादी...... आज न तो आप ठीक से खेल रहीं, न मुझे कोई कहानी ही सुना रहीं. आपका मन नहीं लग रहा क्या? ड्रॉइंग करेंगी मेरे साथ?’ चन्ना फिर सुमित्रा जी को झिंझोड़ रहा था. ’अरेरे...... चन्ना, मेरे सिर में दर्द हो रहा हल्का-हल्का इसलिये मन नहीं लग रहा खेलने में. तुम बनाओ न ड्रॉइंग, मैं चैक कर लूंगी बाद में. ठीक है न?’ सुमित्रा जी ने बहाना बनाया. आज वे