जीजीविषा - 2

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उसकी जेब में केवल चालिस रुपये बचे थे और बचा था ट्रेन पकड़ने से पहले का बहुत सारा समय. रात होने तक टिकट के लिए क्या जुगत भिड़ाई जाए यही सोचता हुआ वह स्टेशन से बाहर निकल कर सामने टैक्सी स्टैंड के पास जाकर खड़ा हो गया. बाहर अफरा-तफरी का बाजार गर्म था. इस कोलाहल में भी उसके दिमाग में सन्नाटा गूँज रहा था. कुछ सूझ नहीं रहा था कि टिकट के पैसों का इंतजाम कैसे होगा. उसने पन्द्रह रुपये की अपनी पसंदीदा सिगरेट खरीदी और उसके गहरे-गहरे कश खींचता सोचने लगा. एक उपाय यह हो सकता था कि उसकी