जहां लौट नहीं सकते पारे की चमकीली बूंदों की तरह सुबह की धूप छत की मुंडेर पर बिखरी है। सर्दी की एक खूब उजली, धुली सुबह! देखते हुये वह सुख की अनुभूति से भर उठी थी- ये उसकी दुनिया है! उसके अपनों की दुनिया... संबंध और अपनत्व की आत्मीय गंध से भरी! देख कर लगता नहीं, बीच में इतने सालों का व्यवधान है। सब कुछ जस का तस धरा है। नई-कोरी, जैसे कल ही की बात हो। प्राची कल देर रात यहाँ पहुंची थी। ट्रेन कई घंटे लेट थी। अम्मा इंतज़ार करते बैठी थी, बाकी सब सो गए थे। किसी