कई बार किसी किताब को पढ़ते वक्त लगता है कि इस लेखक या लेखिका को हमने आज से पहले क्यों नहीं पढ़ा। ऐसा ही कुछ इस बार हुआ जब वंदना वाजपेयी जी का कहानी संकलन "विसर्जन" मैंनें पढ़ने के लिए उठाया। इस संकलन की भी एक अलग ही कहानी है। संयोग कुछ ऐसा बना कि 'अधिकरण प्रकाशन' के स्टाल जहाँ से मेरे दोनों कहानी संकलन आए हैं, वहीं पर वंदना जी ने अपना संकलन रखवाया। उस वक्त सरसरी तौर पर इसे देखा भी लेकिन लेने का पूर्ण रूप से मन नहीं बना पाया। बाद में फिर कुछ अन्य साथियों की फेसबुक