कुन्ती झपाटे से अपनी अटारी में पहुंची. पीछे-पीछे बड़के दादाजी पहुंचे. ’क्या बात है? इस तरह भरी समाज से उठा के लाने का मतलब?’ दादाजी को कुन्ती की हरकत पसन्द नहीं आई थी, ये उनकी आवाज़ से स्पष्ट था. ’देखिये, वो सुमित्रा वहां न केवल ठाठ से रह रही, बल्कि पढ़ाई भी कर रही. और अब तो उसकी नौकरी भी लगने वाली. और मैं यहां बैठ के कंडे पाथ रही. तो कान खोल के सुन लीजिये, मैं भी आगे पढ़ाई करूंगी, और नौकरी भी. ये मेरा फ़ैसला है, सलाह नहीं मांगी है.’ एक सांस में कह गयी कुन्ती, अपनी बात.