बड़ा स्कूल

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चतुर्वेदी जी का बेटा साढ़े तीन वर्ष का हो गया था, उसका अच्छे स्कूल में एडमिशन कराना था। चतुर्वेदी जी अपने बेटे को सुसंस्कारित, बड़ों का सम्मान करने वाला, अनुशासित, विनम्र, शिक्षित, स्वस्थ (शरीर और मन से) और बुद्दिमान बनाना चाहते थे। इसके लिए कई विद्यालयों के अध्ययन के पश्चात् उन्होंने एक विद्यालय पसंद किया, जो हिन्दी माध्यम का था और उस विद्यालय में संस्कारों को तवज्जो देते थे। इसी कारण से उन्हें वह स्कूल बहुत पसंद आया। खुशी-खुशी उन्होंने अपने धर्मपत्नी को बताया। धर्मपत्नी ने अपना मातृ धर्म निभाते हुए एकदम से मना कर दिया और कहा कि, “मेरा